छत्रपति शिवाजी महाराज का कालक्रमानुसार इतिहास: एक विस्तृत विश्लेषण

Chhatrapati Shivaji Maharaj 2

छत्रपति शिवाजी महाराज का परिचय

छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक थे। वे केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक और रणनीतिकार भी थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। उनका जीवन संघर्ष, विजय और नीति का अद्भुत मिश्रण था। इस लेख में, हम शिवाजी महाराज के जीवन की घटनाओं को कालक्रमानुसार प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि उनके महान कार्यों को विस्तार से समझा जा सके।

1. शिवाजी महाराज का जन्म और प्रारंभिक जीवन (1630-1645)

  • 19 फरवरी 1630 को शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी किले (महाराष्ट्र) में हुआ था।
  • उनके पिता शाहजी भोंसले एक मराठा सरदार थे, जो बीजापुर और मुगलों के अधीन कार्यरत थे।
  • उनकी माता जीजाबाई धार्मिक और साहसी महिला थीं, जिन्होंने शिवाजी को वीरता, नीति और मराठा संस्कृति की शिक्षा दी।
  • गुरु दादाजी कोंडदेव ने उन्हें युद्ध कौशल, प्रशासन और राज्य संचालन की शिक्षा दी।

2. हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की नींव (1645-1655)

  • 1645 में, मात्र 15 वर्ष की आयु में, शिवाजी ने स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना का संकल्प लिया।
  • 1646 में, उन्होंने पहली विजय प्राप्त की और तोरणा किले पर अधिकार कर लिया।
  • इसके बाद, उन्होंने पुरंदर, कोंढाणा (सिंहगढ़) और राजगढ़ जैसे महत्वपूर्ण किलों पर कब्जा किया।
  • 1655 में, बीजापुर सल्तनत ने शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उनके पिता शाहजी को बंदी बना लिया। शिवाजी ने रणनीतिक रूप से बातचीत करके उन्हें छुड़ाया।

3. बीजापुर सल्तनत और आदिलशाही से संघर्ष (1656-1665)

  • 1656 में, शिवाजी ने जावली क्षेत्र पर विजय प्राप्त की और अपनी सेना को और मजबूत किया।
  • 1659 में, बीजापुर के सेनापति अफजल खान को शिवाजी ने छल-युद्ध नीति से हराकर मार गिराया।
  • 1660 में, बीजापुर सल्तनत ने सिद्धी जौहर को शिवाजी के खिलाफ भेजा, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता से पन्हाला किले से बचकर विशालगढ़ पहुँचा।
  • 1663 में, उन्होंने मुगलों के प्रमुख सेनानायक शाहिस्ता खान पर छापा मारकर उसकी सेना को तहस-नहस कर दिया।
  • 1664 में, उन्होंने सूरत पर हमला किया और वहां से अपार धन प्राप्त किया जिससे मराठा सेना को आर्थिक मजबूती मिली।

4. पुरंदर संधि और आगरा की कैद (1665-1666)

  • 1665 में, मुगल सेना के सेनानायक राजा जयसिंह ने शिवाजी को हराने के लिए पुरंदर किले पर आक्रमण किया। युद्ध के बाद “पुरंदर संधि” हुई, जिसमें शिवाजी को 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े।
  • 1666 में, उन्हें औरंगजेब के दरबार में बुलाया गया और आगरा में बंदी बना लिया गया।
  • शिवाजी ने अपनी चतुराई से साधु का वेश धारण कर आगरा से सफलतापूर्वक भाग निकलने में सफलता प्राप्त की।

5. मराठा साम्राज्य का पुनर्निर्माण (1667-1674)

  • आगरा से लौटने के बाद, शिवाजी ने अपनी खोई हुई शक्ति पुनः प्राप्त करनी शुरू कर दी।
  • 1670 में, उन्होंने मुगलों से पुरंदर, सिंहगढ़ और अन्य महत्वपूर्ण किले पुनः जीत लिए।
  • 1671-1674 के बीच, उन्होंने मराठा सेना का विस्तार किया और नौसेना का गठन किया।

6. छत्रपति का राज्याभिषेक और स्वराज्य की स्थापना (1674-1680)

  • 6 जून 1674 को, रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह में शिवाजी महाराज का छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक हुआ।
  • उन्होंने मराठा प्रशासनिक प्रणाली को व्यवस्थित किया और मजबूत नौसेना का निर्माण किया।
  • 1677 में, उन्होंने कर्नाटक अभियान चलाया और जिंजी तथा वेल्लोर किलों पर कब्जा किया।
  • 1680 में, शिवाजी महाराज का स्वर्गवास हुआ, जिससे पूरा मराठा साम्राज्य शोक में डूब गया।

शिवाजी महाराज का निधन और उत्तराधिकार संकट (1680-1681)

छत्रपति शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु के समय, उनके दो प्रमुख उत्तराधिकारी थे:

  1. संभाजी महाराज – शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र, जो वीर, साहसी और युद्धनीति में निपुण थे।
  2. राजाराम महाराज – शिवाजी के छोटे पुत्र, जो अधिक सौम्य और बुद्धिमान माने जाते थे।
  • शिवाजी महाराज के निधन के बाद, उनके उत्तराधिकार को लेकर सत्ता संघर्ष छिड़ गया।
  • शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी सोयराबाई ने अपने पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बैठाने की कोशिश की, लेकिन संभाजी महाराज ने इस साजिश को नाकाम कर दिया और 1681 में छत्रपति बने।
  • छत्रपति संभाजी महाराज ने 1681 से 1689 तक शासन किया। संभाजी महाराज ने अपने शासनकाल में मुगलों, बीजापुर और गोवा के पुर्तगालियों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया।
  • 1689 में, औरंगजेब की सेना ने धोखे से छत्रपति संभाजी महाराज को पकड़ लिया और अमानवीय यातनाओं के बाद उनकी हत्या कर दी।
  • संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मराठा सरदारों ने राजाराम महाराज (1689-1700) को छत्रपति घोषित किया।

निष्कर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज ने न केवल एक साम्राज्य की स्थापना की बल्कि भारतीय संस्कृति, सैन्य रणनीति और प्रशासन में क्रांतिकारी बदलाव किए। उनका जीवन हमें स्वतंत्रता, स्वाभिमान और संघर्ष की प्रेरणा देता है। उनकी नीति, वीरता और दूरदर्शिता आज भी हमें एक स्वतंत्र और सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रेरित करती है।