छत्रपति संभाजी महाराज परिचय
छत्रपति संभाजी महाराज (1680-89), जो वीर मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे, अपने शौर्य, निडरता और धर्म रक्षा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने पिता, महान छत्रपति शिवाजी महाराज के पदचिह्नों पर चलते हुए मुगलों और अन्य आक्रांताओं के खिलाफ संघर्ष किया। उनकी वीरता और हिंदू धर्म की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के कारण मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु माना। इसी कारण, जब मुगलों ने उन्हें बंदी बनाया, तो उन्हें अकल्पनीय यातनाएं दी गईं और अंततः एक दर्दनाक मृत्यु मिली।
छत्रपति संभाजी महाराज की गिरफ्तारी
5 फरवरी 1689 को छत्रपति संभाजी महाराज को उनके विश्वासघाती सरदार गणेश गोविंद गोकले के कारण संगमेश्वर (वर्तमान रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र) में मुगलों ने बंदी बना लिया। उनके साथ उनके प्रिय मित्र और विश्वासपात्र कवि कलश भी थे। उन्हें औरंगजेब के सामने पेश किया गया, जिसने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन संभाजी महाराज ने इसे दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया। उनके इस साहसिक उत्तर ने औरंगजेब को क्रोधित कर दिया और उसने उन्हें भयानक यातनाएं देने का आदेश दिया।
छत्रपति संभाजी महाराज को दी गई अमानवीय यातनाएं
छत्रपति संभाजी महाराज की यातनाओं को सुनकर भी रूह कांप उठती है। औरंगजेब ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी मृत्यु अत्यंत दर्दनाक हो ताकि मराठाओं और हिंदुओं के बीच भय व्याप्त हो जाए। उन्हें प्रतिदिन नई यातनाओं से गुजरना पड़ा, जिनमें निम्नलिखित शामिल थीं:
- आँखों में गरम लोहे की सलाई डालना: मुगलों ने उनकी आँखों में गरम सलाखें डालकर उन्हें अंधा करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने एक भी आह नहीं भरी।
- नाखून और अंगुलियां खींचना: उनके हाथ-पैरों के नाखून उखाड़ दिए गए और अंगुलियों को तोड़ दिया गया, जिससे उन्हें असहनीय पीड़ा हुई।
- त्वचा को लोहे के काँटों से चीरना: उनकी त्वचा को लोहे के काँटों से फाड़ा गया ताकि उनकी पीड़ा और अधिक बढ़ सके।
- जीभ काट दी गई: ताकि वे किसी भी प्रकार से अपने विचार व्यक्त न कर सकें और उनका आत्मसम्मान तोड़ा जा सके, उनकी जीभ काट दी गई।
- मांस को शरीर से नोचकर निकाला गया: उनके शरीर से धीरे-धीरे मांस को नोचा गया, जिससे उनके घाव नासूर बन गए।
- धातु के गरम सरियों से शरीर जलाना: लोहे की गरम छड़ों से उनके शरीर को जलाया गया, जिससे असहनीय पीड़ा हुई।
छत्रपति संभाजी महाराज की वीरगति
यातनाओं के बावजूद, छत्रपति संभाजी महाराज ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और मराठा स्वाभिमान को बनाए रखा। अंततः, 11 मार्च 1689 को औरंगजेब के आदेश पर उनकी हत्या कर दी गई। उन्हें बुरी तरह काटकर उनके शरीर के टुकड़े कर दिए गए और उनकी मृत देह को भी अपमानित किया गया।
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान और उनकी विरासत
छत्रपति संभाजी महाराज की शहादत ने मराठा साम्राज्य को और अधिक सशक्त किया। उनकी मृत्यु ने मराठाओं में प्रतिशोध की भावना को जन्म दिया और आगे चलकर उनके पुत्र शाहूजी तथा सेनानायक संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष को और तेज कर दिया। संभाजी महाराज की निडरता और बलिदान ने उन्हें एक अमर वीर बना दिया, जिनकी गाथा आज भी मराठा इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाती है।
निष्कर्ष
छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता और यातनाओं के बावजूद उनकी अडिग इच्छाशक्ति भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। उनका बलिदान न केवल मराठा साम्राज्य के लिए बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए प्रेरणादायक है। उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि धर्म, संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किसी भी यातना का सामना किया जा सकता है। आज भी, उनकी गाथा हमें अपने मूल्यों और परंपराओं की रक्षा के लिए दृढ़ रहने की प्रेरणा देती है।